गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

‎निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामा‬: | ‪द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसञ्ज्ञैर्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्‬ || श्लोक भाषाय


मानमोह विगत भये, संग दोष जीत लिये, आत्मा में स्थित और कामना निवृत्त है | सुख-दुःख के द्वन्द्वों से मुक्त ऐसा ज्ञानीचित...

Posted by धर्मसम्राट स्वामी करपात्री on Saturday, 12 December 2015

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