रविवार, 8 नवंबर 2015

आज्यं मेधः गावस्तण्डुलाः

वेद ने विशेष रूपसे "गौ" को बार बार "अघ्न्या" कहा गया है ( इसीसे स्पष्ट है कि यज्ञार्थ वध्य पशुओं की भांति गो को अन्य पशुओं के सदृश नहीं ... है ) अतः स्पष्ट है कि किसी भी रूप में गाय का वध नहीं किया जा सकता |' मेध ' शब्द सर्वत्र हिंसा वाचक नहीं होता अन्यथा तो "सर्वमेध यज्ञ " में सभी (यजमानादि ) के वध्य की कल्पना प्रसक्त होने लगेगी , ''गोमेध'' शब्द में प्रयुक्त 'गो' शब्द गोविकार स्वरूप गोरस का वाचक है , अन्नं हि गौ: (- शतपथब्राह्मण ४/३/४/२५) , आज्यं मेधः गावस्तण्डुलाः (-अथर्ववेद ११/२/५) | एतावता गोमेध का अभिप्राय है कि आज्यादि गोरस की प्रधानता अन्न से जो यज्ञविशेष होता है , वही "गोमेध" है |
-पूज्य धर्मसम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महाराज |
श्रुति में गौओं को अघ्न्या (अवध्य) कहा गया है, फिर भला किसके द्वारा ये मारने योग्या हो सकती हैं ? जो पुरुष गौ (गाय) अथवा बैलों को मारता है, वह महान पाप करता है -
अघ्न्या इति गवां नाम क एता हन्तुमर्हति |
महच्चकाराकुशलं वृषं गां वाssलभेत् तु यः || (- महाभारत,शान्तिपर्व २६२/४७ )

|| जय श्रीराम ||

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