वेद  ने विशेष रूपसे   "गौ" को  बार  बार  "अघ्न्या"  कहा  गया  है  ( इसीसे  स्पष्ट  है  कि  यज्ञार्थ वध्य  पशुओं की  भांति   गो  को  अन्य  पशुओं  के  सदृश  नहीं ...  है    )   अतः  स्पष्ट  है  कि  किसी भी  रूप  में   गाय  का  वध  नहीं  किया  जा  सकता |' मेध ' शब्द  सर्वत्र  हिंसा  वाचक  नहीं  होता  अन्यथा  तो   "सर्वमेध यज्ञ "    में  सभी (यजमानादि )  के    वध्य  की  कल्पना    प्रसक्त  होने  लगेगी   ,  ''गोमेध'' शब्द    में  प्रयुक्त   'गो' शब्द  गोविकार स्वरूप  गोरस का वाचक है ,   अन्नं हि गौ:  (- शतपथब्राह्मण ४/३/४/२५) ,  आज्यं मेधः  गावस्तण्डुलाः  (-अथर्ववेद ११/२/५) |     एतावता गोमेध का अभिप्राय है कि आज्यादि  गोरस   की प्रधानता  अन्न से  जो यज्ञविशेष होता है ,  वही "गोमेध" है |    
 -पूज्य धर्मसम्राट स्वामी श्री करपात्री जी महाराज |
श्रुति में गौओं को अघ्न्या (अवध्य) कहा गया है, फिर भला किसके द्वारा ये मारने योग्या हो सकती हैं ? जो पुरुष गौ (गाय) अथवा बैलों को मारता है, वह महान पाप करता है -
अघ्न्या इति गवां नाम क एता हन्तुमर्हति |
महच्चकाराकुशलं वृषं गां वाssलभेत् तु यः || (- महाभारत,शान्तिपर्व २६२/४७ )
|| जय श्रीराम ||
श्रुति में गौओं को अघ्न्या (अवध्य) कहा गया है, फिर भला किसके द्वारा ये मारने योग्या हो सकती हैं ? जो पुरुष गौ (गाय) अथवा बैलों को मारता है, वह महान पाप करता है -
अघ्न्या इति गवां नाम क एता हन्तुमर्हति |
महच्चकाराकुशलं वृषं गां वाssलभेत् तु यः || (- महाभारत,शान्तिपर्व २६२/४७ )
|| जय श्रीराम ||
 
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