शनिवार, 4 अप्रैल 2015

क्या दो पीठों पर एक शंकराचार्य होना उचित है ?

प्रश्न - क्या दो पीठों पर एक शंकराचार्य होना उचित है ?
उत्तर- जो व्यक्ति दो पीठों पर स्वयं को शंकराचार्य कहे , शास्त्रीय दृष्टि से वस्तुतः ऐसा व्यक्ति किसी भी पीठ का शंकराचार्य नहीं | सदाशिवावतार भगवान श्री आद्य शंकराचार्य के श्रीकरकमलों से प्रतिस्थापित हजारों वर्षों की चली आयी परम्परा को तोड़ कर , मठाम्नाय महानुशासनम् के सूर्यवत् सुस्पष्ट श्लोकों का यथार्थ कुतर्कों से बदलकर स्वच्छंद परम्परा आरोपित करने वाले, मर्यादा का विनाश करने वाले वस्तुतः सबसे बड़े अपराधी हैं | भगवान् श्री आद्य शंकराचार्य इन अपराधियों को कभी क्षमा नहीं करेंगे !
भगवान् श्री आद्य शंकराचार्य ने बहुत भाव से, बहुत श्रद्धा से चार पीठों पर चारों दिशाओं में चार शंकराचार्यों की परम्परा स्थापित की थी , जिसमे परमपूज्य आचार्य के भगवान नारायण की चार भुजाओं की भांति चार शिष्य स्वयं भगवान श्री आद्य शंकराचार्य द्वारा अधिरोहित किये थे | और उन चारों मठों के अलग -अलग विभाग बनाकर उनके अलग-अलग विधान भी स्वयं भगवान श्री आद्य शंकराचार्य द्वारा प्रकाशित किये थे | जो हमारे भारत देश में लाखों- लाखों घोर विपदाएं, विपरीत परिस्थितियाँ आने के बाद भी हजारों वर्षों से अद्यावधिपर्यन्त अक्षुण्ण रही , कभी ना बदली , ना ही परिवर्तित की गयी |
क्योंकि धर्मस्य प्रभुरच्युतः -धर्म के सुरक्षा करने में स्वयं भगवान नारायण सदैव तत्पर हैं |
.............आज झंडा उठाने वाले चार चेले खड़े कर , चार भोले व्यक्ति अपने साथ लुब्ध करके सत्य को ढकने की बाल्यता करने वाले ये भूल जाते हैं कि सनातन धर्म सत्य पर प्रतिष्ठित है , किसी जनबल अथवा दिखावटी प्रचार पर नहीं, यह जहां विद्यमान है , वहीं से स्वतः प्रकाशित होने वाला है |
इसके साथ किया गया तिलभर भी अन्याय कभी ढक नहीं सकता | आज नहीं तो कल वह प्रकाशित हो ही जाएगा | उसे पुनः ढकोगे तो कहीं अन्यत्र से वह प्रस्फुटित होगा , वहां दबाओगे तो फिर कहीं और से प्रस्फुटित होगा | अन्याय संचित धन जिस प्रकार समूल नष्ट होता है , उसी प्रकार अन्याय- आधारित राज्य भी समूल ही नष्ट हो जाता है |
............यही सत्य -सनातन -धर्म की अचिन्त्य महिमा है |
....... सत्यमेव जयते नानृतम् ||
|| जय श्री राम ||
By shankar sandesh

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद : - इन महाशय को कोई एक पीठ का शंकराचार्य बना दो बस , कुर्सी पर बैठने का सपना पूरा हो जाएगा !!!


Har Har Har Har Har Har Har
Jai Sanatan dharma Ki
Jai Sanātanī Gaudapada Dharam Samrat Swami Karpatri Ji Ki
Please read this thoroughly a nice review given by
Shankar Sandesh
For all Universe recommended by page admin
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद : -
इन महाशय को कोई एक पीठ का शंकराचार्य बना दो बस , केजरीवाल की तरह इस व्यक्ति का भी कुर्सी पर बैठने का सपना पूरा हो जाएगा !!!




Swaamishreeh avimukteshwaraanandah स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः

.......................अयोग्य नंबर एक !!!
यह शांकर सम्प्रदाय का दुर्भाग्य ही है कि ऐसे लोग इस परम पवित्र सम्प्रदाय का बोझ बढाते हैं !!
..........ऐसे भ्रष्ट और नाममात्रधारी संन्यासियों के हाथ में सनातन धर्म की बागडोर देने की सोचना भी सनातन -वैदिक - धर्म का सबसे बड़ा दुर्भाग्य कहा जा सकता है !!
एक सरल सा उदाहरण -
धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज (जिन्होंने शूद्रों , म्लेच्छों के मंदिर प्रवेश मात्र से आहत होकर अपना मंदिर ही अलग बनवा लिया था) के नाम पर (चित्र लगाकर ) , प्रतिष्ठित संस्थानों से ऐसी पुस्तकें छपवाई जा रही हैं जहां तंत्रशास्त्रों से द्विजेतरों , शूद्रों के कलिकाल में आपातकालिक (आपातकाल प्राप्त होने पर ) संन्यास लेना उचित बताया जाता है और ईदृश वेदविरुद्ध वचनों को सहस्रश स्वीकृत किया जाता है ! क्योंकि धर्मसम्राट का विद्वत्समाज में नाम है और उनको ब्रांड बनाकर अपना दो पीठों पर जमे रहने का स्वार्थ साधना सबसे उत्तम उपाय है , ...... धिक् !!!
श्री आद्य शंकराचार्य भी कलिकाल में ही प्रकट हुए किन्तु वे वेदविरुद्ध तन्त्रशात्रों के वचनों का निषेध कर लोक में सनातन -वैदिक - धर्म की स्थिति को अक्षुण्ण रखे थे , स्वयं ब्रह्मसूत्र के द्वितीय अध्याय के द्वितीय पाद के अंत में ( जीवोत्पत्यादि के अनित्यत्व के प्रसंग में ) पांचरात्र इत्यादि तन्त्रशात्रों के वेदविरोधी वचनों का खण्डन कर वेदों की ध्वजा उन्नत किये थे , टीकाकार श्री आनंदगिरि भी मानते हैं कि वेद से अविरुद्ध होने पर ही तन्त्रशात्र का वचन मान्य होता है | वहीं दूसरी ओर ये आजकल के आधुनिक नकली शांकर जिनको मात्र मीडिया से ही अपना प्रचार करने का शौक है , कुर्सी के लोभ में हजारों वर्षों की गुरु- परम्परा को धूलि-धूसरित कर दो-दो पीठों पर एक शंकराचार्य बिठाने का समर्थन करते हैं , और जहां से वो हित सधे , वहीं डूबे रहकर प्रयास रत रहते हैं , सद्धर्मं रक्षा से जिनको कोई लेना-देना नहीं ; वेदविरोधी तंत्रशास्त्रों का समन्वय कर उसे देश काल परिस्थितियों के लिए उचित बताने वाले अपने चेलों को शुभाशंसा (आशीर्वाद ) प्रदान करते हैं |
इनकी दृष्टि में ऐसे द्विजेतरों (शूद्रों /म्लेच्छों आदि ) के लिए संन्यास विधान स्वीकारने वाले लोग बहुत उत्तम विद्वान हैं क्योंकि ऐसे लोग इनके कार्य सम्पन्न करने हेतु बुलाये जाते हैं | ( पुस्तक लेखक ने स्वामी स्वरूपानंद जी के कहने पर संन्यास आश्रम प्रवेश के समय इन (स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ) का कर्मकाण्ड सम्पन्न किया था )
आज इनकी यह उद्घोषणा है कि शूद्रों और म्लेच्छों को संन्यास देना भी संभव है , समयानुसार उचित है , कल यह संन्यास भी देना शुरू करेंगे (शायद कलिकाल का हवाला देकर शुरू भी कर चुके हों तो किं आश्चर्यम् ?? )
अधर्म को धर्म बोलकर धीरे-धीरे सनातन -वैदिक -धर्म की जड़ें खोद कर अपने स्वार्थ पूर्ण करने वाला कांग्रेसियों की संगत का असर आये तो इसमें आश्चर्य कैसा ?
वर्णाश्रम धर्म का कभी नाश नहीं होता , ये सदा थी, सदा है और सदा रहेगा , ये वो वैदिक धर्म है जो सदा रहने वाला है , इसीलिये इसे सनातन धर्म भी कहा जाता है |
..................कहा जाता है पाखण्ड और झूठ की शक्ति तो बहुत दीखती है किन्तु उसकी आयु बहुत कम होती है | 
धर्म की जय हो !
अधर्म का नाश हो !
हर हर महादेव !
जय जय शंकर , हर हर शंकर !
|| जय श्री राम ||

Posted by Bipin Chauhan on Saturday, April 4, 2015