प्रश्न -  क्या  दो  पीठों  पर  एक  शंकराचार्य  होना  उचित  है  ?
उत्तर- जो व्यक्ति दो पीठों पर स्वयं को शंकराचार्य कहे , शास्त्रीय दृष्टि से वस्तुतः ऐसा व्यक्ति किसी भी पीठ का शंकराचार्य नहीं | सदाशिवावतार भगवान श्री आद्य शंकराचार्य के श्रीकरकमलों से प्रतिस्थापित हजारों वर्षों की चली आयी परम्परा को तोड़ कर , मठाम्नाय महानुशासनम् के सूर्यवत् सुस्पष्ट श्लोकों का यथार्थ कुतर्कों से बदलकर स्वच्छंद परम्परा आरोपित करने वाले, मर्यादा का विनाश करने वाले वस्तुतः सबसे बड़े अपराधी हैं | भगवान् श्री आद्य शंकराचार्य इन अपराधियों को कभी क्षमा नहीं करेंगे !
उत्तर- जो व्यक्ति दो पीठों पर स्वयं को शंकराचार्य कहे , शास्त्रीय दृष्टि से वस्तुतः ऐसा व्यक्ति किसी भी पीठ का शंकराचार्य नहीं | सदाशिवावतार भगवान श्री आद्य शंकराचार्य के श्रीकरकमलों से प्रतिस्थापित हजारों वर्षों की चली आयी परम्परा को तोड़ कर , मठाम्नाय महानुशासनम् के सूर्यवत् सुस्पष्ट श्लोकों का यथार्थ कुतर्कों से बदलकर स्वच्छंद परम्परा आरोपित करने वाले, मर्यादा का विनाश करने वाले वस्तुतः सबसे बड़े अपराधी हैं | भगवान् श्री आद्य शंकराचार्य इन अपराधियों को कभी क्षमा नहीं करेंगे !
 भगवान्  श्री  
आद्य  शंकराचार्य  ने  बहुत  भाव  से,  बहुत  श्रद्धा  से   चार  पीठों  पर
  चारों  दिशाओं  में   चार  शंकराचार्यों  की  परम्परा  स्थापित  की   थी 
 , जिसमे  परमपूज्य  आचार्य  के   भगवान  नारायण  की  चार  भुजाओं  की  
भांति  चार शिष्य   स्वयं  भगवान  श्री  आद्य  शंकराचार्य  द्वारा  
अधिरोहित  किये  थे  |   और  उन    चारों  मठों  के  अलग -अलग  विभाग  
बनाकर  उनके  अलग-अलग  विधान  भी  स्वयं  भगवान  श्री  आद्य  शंकराचार्य  
द्वारा  प्रकाशित  किये    थे  |  जो हमारे  भारत   देश  में   लाखों- 
लाखों   घोर   विपदाएं,  विपरीत  परिस्थितियाँ    आने  के  बाद  भी    
हजारों वर्षों  से  अद्यावधिपर्यन्त   अक्षुण्ण  रही  ,  कभी  ना  बदली  , 
 ना  ही  परिवर्तित  की  गयी  |  
क्योंकि धर्मस्य प्रभुरच्युतः -धर्म के सुरक्षा करने में स्वयं भगवान नारायण सदैव तत्पर हैं |
.............आज झंडा उठाने वाले चार चेले खड़े कर , चार भोले व्यक्ति अपने साथ लुब्ध करके सत्य को ढकने की बाल्यता करने वाले ये भूल जाते हैं कि सनातन धर्म सत्य पर प्रतिष्ठित है , किसी जनबल अथवा दिखावटी प्रचार पर नहीं, यह जहां विद्यमान है , वहीं से स्वतः प्रकाशित होने वाला है |
इसके साथ किया गया तिलभर भी अन्याय कभी ढक नहीं सकता | आज नहीं तो कल वह प्रकाशित हो ही जाएगा | उसे पुनः ढकोगे तो कहीं अन्यत्र से वह प्रस्फुटित होगा , वहां दबाओगे तो फिर कहीं और से प्रस्फुटित होगा | अन्याय संचित धन जिस प्रकार समूल नष्ट होता है , उसी प्रकार अन्याय- आधारित राज्य भी समूल ही नष्ट हो जाता है |
............यही सत्य -सनातन -धर्म की अचिन्त्य महिमा है |
....... सत्यमेव जयते नानृतम् ||
|| जय श्री राम ||
By shankar sandesh
क्योंकि धर्मस्य प्रभुरच्युतः -धर्म के सुरक्षा करने में स्वयं भगवान नारायण सदैव तत्पर हैं |
.............आज झंडा उठाने वाले चार चेले खड़े कर , चार भोले व्यक्ति अपने साथ लुब्ध करके सत्य को ढकने की बाल्यता करने वाले ये भूल जाते हैं कि सनातन धर्म सत्य पर प्रतिष्ठित है , किसी जनबल अथवा दिखावटी प्रचार पर नहीं, यह जहां विद्यमान है , वहीं से स्वतः प्रकाशित होने वाला है |
इसके साथ किया गया तिलभर भी अन्याय कभी ढक नहीं सकता | आज नहीं तो कल वह प्रकाशित हो ही जाएगा | उसे पुनः ढकोगे तो कहीं अन्यत्र से वह प्रस्फुटित होगा , वहां दबाओगे तो फिर कहीं और से प्रस्फुटित होगा | अन्याय संचित धन जिस प्रकार समूल नष्ट होता है , उसी प्रकार अन्याय- आधारित राज्य भी समूल ही नष्ट हो जाता है |
............यही सत्य -सनातन -धर्म की अचिन्त्य महिमा है |
....... सत्यमेव जयते नानृतम् ||
|| जय श्री राम ||
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