रविवार, 1 नवंबर 2015

स्वामी रामसुखदास जी की विद्वत्ता

गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित गीता के अर्थ में बहुत दोष हैं , अनेक स्थलों पर ये अर्थ श्लोकों का सही अभिप्राय प्रकट नहीं करते | मनगढ़ंत पद्धति से अर्थ किये जाने से गीताप्रेस की गीता में कोई एकरूपता नहीं है | ........बनियों ने सारा गुड गोबर कर रखा है |
|| जय श्रीराम ||

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