गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित गीता के अर्थ में बहुत दोष हैं , अनेक
स्थलों पर ये अर्थ श्लोकों का सही अभिप्राय प्रकट नहीं करते | मनगढ़ंत
पद्धति से अर्थ किये जाने से गीताप्रेस की गीता में कोई एकरूपता नहीं है |
........बनियों ने सारा गुड गोबर कर रखा है |
|| जय श्रीराम ||
|| जय श्रीराम ||
स्वामी रामसुखदास जी की विद्वत्ता -_____________________श्लोक के अभिप्राय में मनगढ़ंत व्याख्याएं करना तो कोई स्वामी राम...
Posted by Dharamsamrat Swami Karpatri Ji on Saturday, October 31, 2015
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें