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रविवार, 17 जनवरी 2016

सुविचार

हमारे प्राचीन आचार्यगण इस धरती के सबसे महान् जन थे, वे धर्म की ध्वजा , भक्ति के अनन्त सागर , ज्ञान के सर्वोच्च शिखर , योग के मूर्धन्य थे | उनका जीवन ही मूर्त्त शास्त्र था , धर्म का परम गूढ़ तत्त्व उनके जीवनमार्ग में पग पग पर समाया था |
वे किसी से द्वेष न करने वाले , मेधावी , शोक -मोह से पार , जीवन के समस्त रहस्यों के विज्ञाता , करुणाके समुद्र , अभिमान , स्वार्थ, काम , क्रोध , लोभ , बल , परिग्रह से सर्वथा विमुक्त , अहिंसा के पुंज ,सदा शान्त , शम - दम-उपरति -तितिक्षा -समाधान -श्रद्धा के धनी , एकांत वासी , ध्यान योग में समाहित चित्त, वैराग्य के साक्षात् अवतार , धृतव्रत, ब्रह्मभूत , प्रसन्नात्मा , सर्वहितकारी , समत्वयोग संपन्न, बहुत सीधे , भोलेभाले , सरल , सत्यवादी , मानवता के परम आदर्श थे |
जिनके होने से वसुन्धरा धन्य होती है , कुल पवित्र होते हैं , जननी कृतार्था हो जाती है , ऐसे हमारे आचार्य गण रहे हैं |
........................ भला अपने ऐसे ही आचार्यों की महान् परम्परा पर हम गौरव क्यों न करें ? ऐसे अमलात्मा परमहंस धुरन्धरों के पवित्र चरण कमलों के ही हम अनुयायी हैं |
उनका जीवन , उनका चरित्र , उनकी लीला कथाएँ , समस्त अज्ञान का नाश करने वाला , परम कल्याण को प्रदान करने वाला दिव्य प्रकाश है, उनका जीवन वह मधुर आध्यात्मिक गीत है, जिसे सुनकर फिर कुछ सुनने की न आवश्यकता शेष रह जाती है न अपेक्षा | जो भी उनके पास आया , जिसने भी उनको ध्याया , जिसने भी उनकी क्षणिक संगति पाई , उसका जन्म लेना सार्थक हुआ , उसका जीवन धन्य हो गया |
जो कहते हैं तुमको बुद्धि कहाँ से आती है , तुमको साहस , बल कहाँ से प्राप्त होता है तो वे भी जानें कि हमको बुद्धि यहाँ से आती है|
अपार श्रद्धा के धनी हम , अपने पूर्वाचार्यों की चरण रज का ध्यान करते हैं तो उसके सुमिरन मात्र से हृदय में स्वतः दिव्य दृष्टि हमको प्राप्त हो जाती है , हमको कहीं अन्यत्र से धर्म ज्ञान सीखने की आवश्यकता नहीं |
|| जय श्री राम ||

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