Lingam #shivlingaअश्लीलता या आध्यात्मिकता ?शिवलिङ्ग के सन्दर्भ में लोकभ्रान्ति का सारभूत उन्मूलन https://shankarsandesh.wordpress.com/2015/10/27/146/|| जय श्री राम ||
Posted by Dharamsamrat Swami Karpatri Ji on Tuesday, October 27, 2015
Swami Hariharananda Sarasvati or Karpatri Ji was respected Vedant Acharya; disciple of Brahmananda Sarasvati; met Yogananda at Kumbh Mela. He was from Dashanami Sampradaya ("Tradition of Ten Names") is a Hindu monastic tradition of "single-staff renunciation" (Ekadaṇḍisannyasi)generally associated with the Advaita Vedanta tradition.
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बुधवार, 28 अक्टूबर 2015
शिवलिंग ! अश्लीलता या आध्यात्मिकता ?
मंगलवार, 7 जुलाई 2015
वेदार्थपारिजात – खण्ड ०२
वेदार्थपारिजात का द्वितीय खंड आप सभी के सम्मुख प्रस्तुत करते
हुए अपार हर्ष हो रहा है , यह खंड जहां समस्त विधर्मियों ,
अधर्मियों आदि के दुरभिमान को खंड खंड कर देगा , वही सत्य
-सनातन-वैदिक धर्म अनुयायियों को अथाह रूप से प्रमुदित करेगा ,
ऐसा विश्वास है |
।।श्री धर्मसम्राट्-स्तवनम्।।
आदित्यो-निजतेजसा हिमकर-स्तापापनोदेन वै, भौमः शत्रुविदारणेन-सततं सौम्यश्च ज्ञानाकरैः।
वाण्या देवगुरुःकविःसुतपसा सौरिश्च सत्येन यः, इत्थं सर्वविधैःग्रहैः विलसितःश्रीपाणिपात्रो यतिः।।१।।
स्वकीय तेजस्विता से जो सूर्य,मानव मन के संतापों को निश्चित दूर करने में जो चन्द्र,शास्त्र विरोधियों के अभिमतों को विदीर्ण करने में (सेनापतित्वात्)भौम,ज्ञान संपदा में बुध,शास्त्र पूत वक्तृता में देवगुरु वृहस्पति,तपस्या में कविवर शुक्राचार्य,सत्य भाषण एवं न्यायप्रियता में शनिदेव,के समान हैं,ऐसे सर्वविध ग्रहों के तेज से सुशोभित पूज्य श्री करपात्री जी महाराज का दिव्य स्वरूप है।१।।
भक्त्या-भूषित-मानसं यतिवरं वैराग्य-वोधाश्रयं,ज्ञानाकाश-विभासकं-पटुतमं विज्ञान-भा-भासुरम्।
सिद्धान्त-प्रतिपादने प्रतिपलं संरक्षणे तत्परं, वन्दे ज्ञानदिवाकरं हरिहरानन्दं सदा श्रद्धया।।२।।
भक्ति से भूषित मन वाले,ज्ञान-वैराग्य से संपन्न,ज्ञानाकाश को प्रकाशित करने वाले,विज्ञान के तेज से भासित अत्यन्त दक्ष,प्रतिपल सिद्धान्त के प्रतिपादन एवं संरक्षण में तत्पर,ज्ञानदिवाकर यतिश्रेष्ठ पूज्य श्री हरिहरानन्द सरस्वती जी महाराज को में सदा श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।।२।।
यो दृष्टवा भवसागरे निपतितं मोहान्धकारे जगत्, अज्ञाना-वृतमानसं विचलितं पाखण्ड पंकेरतम्।
कारुण्येन समागतो नरवरे तद्रक्षितुं यः स्वयं, पूज्यो भावभरैःनृभिःप्रतिदिनं श्रीपाणिपात्रो यतिः।।३।।
अज्ञान से घिरे हुए,अतएव विचलित हो पाखण्ड रूपी कीचङ से आवृत,प्राणियों को मोहान्धकार रूपी भवसागर में पङे हुए देखकर करुणा से द्रवीभूत हो इस जगत की रक्षा के लिये,जो स्वयं १नरवर में आये,ऐसे पूज्य श्री करपात्री जी महाराज समस्त प्राणियों के द्वारा भावपूर्वक नित्य पूजनीय(प्रणम्य) हैं।।
१ -यद्यपि पूज्य श्री की अवतरण स्थली भटनी प्रतापगढ यूपी है,तदपि यहां नरवर को वरीयता देने का तात्पर्य है,जन्म के दो प्रकार शास्त्रों में कहे गये हैं, १ -विन्दु २ -नाद,(द्विधा वंशो विद्यया जन्मना च)पूज्य श्री का पावन यश विन्दु कुल की अपेक्षा नाद (विद्या,ज्ञान)कुल के कारण ही है,नरवर पूज्य श्री का विद्याकुल गुरुकुल है।
आर्यभ्रान्ति निवारणैक-कुशलो लोकस्य संरक्षकः, शास्त्रार्थ-प्रतिपादने च निरतो वादादि संयोजने।
जात्या वर्णविधिर्न कर्मविहितः शास्त्रेष्वियानेव वाक्, इत्याख्यैः सुवचैः प्रतिष्ठितयशाः श्रीपाणिपात्रो यतिः।।४।।
तथाकथित आर्य जनों के विचारों में आयी भ्रान्तियों के निवारण में कुशल,लोक के संरक्षक,शास्त्रों के परमपरागत समुचित अर्थ का प्रतिपादन करने तथा(वादे वादे जायते तत्व बोधः इस सिद्धान्त का अनुसरण करते हुये) शास्त्रीय पक्ष का निर्धारण करने के लिये विचार गोष्ठी आयोजित करने में निरत,वर्ण व्यवस्था जन्म से होती है न कि कर्म से शास्त्रों में यही सिद्धान्त स्पष्टतया सर्वथा वर्णित है,इत्यादि सम्यक मतों के प्रतिपादन से लब्ध प्रतिष्ठ पूज्य श्री करपात्री जी महाराज वन्दनीय हैं।
संसारानल-तप्तमानसवतां कोसौ सुधानिर्झरः, भक्तानां-भगवानपूर्व-रुचिरो-वात्सल्य-कल्पद्रुमः।
मोहग्राहग्रहीतमानसवतां मोक्षार्थ विद्यामणिः, सर्वाशापरिपूरको हरिहरो श्रीपाणिपात्रोयतिः।।५।।
संसाराग्नि में झुलसते प्राणियों को शीतलता प्रदान करने के लिये ये सुधा निर्झर के रूप में कौन हैं,भक्तोंके लिये अपूर्व मनोहर सर्वाशापरिपूरक भगवान,महामोह रूपी ग्राह के द्वारा जकङे हुये मन वाले प्राणियों की मुक्ति के लिये जो विद्या मणि हैं,(ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः) वात्सलता के कल्पतरु श्रीहरिहरानन्द सरस्वती स्वामीश्री करपात्री जी महाराज वन्दनीय हैं।।५।।
शैवानां-शिवतत्वनिष्ठ-रुचिरःसीताधवो राघवः, शाक्तानां समतामयश्च मधुहा राधाधवोमाधवः।
विष्णौ भक्तिमतां सतां शिवकरःश्रीवैष्णवःशंकरः, नोमेशो न हरी असौ हरिहरःसाक्षाद्यतीन्द्राधिराट् ।। ६ ।।
मानो शैवों में श्रेष्ठ शिवतत्व निष्ठ भगवतीसीता के स्वामी श्रीराम हैं,अथवा शाक्तों में समत्वभाव रखने वाले,मधुहन्ता राधावर श्रीकृष्ण हैं,या भगवान विष्णु में भक्ति भाव रखने वाले,सज्जनों का कल्याण करने वाले,श्रीवैष्णव देवाधिदेव महादेव ही हैं,अरे नहीं,ये न तो उमापति शिव हैं, न राम कृष्ण हैं, ये तो साक्षात् यतीश्वरो के भी अधिनायक पूज्य श्री हरिहरानन्द सरस्वती स्वामी श्री करपात्री जी महाराज हैं।
(१ हरिश्च हरिश्च इति हरी-श्रीराम कृष्णौ,)
धर्मस्य प्रगतिर्भवेदवनतिर्भूयादधर्मस्य च,सद्भावो मनुजेषु वै खलु सदा लोकस्य भद्रं भबेत्।
गोमातुर्विजयोभवेदथ च गोहत्या निरुद्धा भवेत्,इत्थं घोषकरः सदा विजयते योगीन्द्रवृन्दाधिराट्।।७ ।।
धर्म की जय हो,अधर्म का नाश हो,प्राणियों में सदद्भावना हो,विश्व का कल्याण हो,गौ माता की जय हो,गो हत्या बन्द हो,इस प्रकार की घोषणाओं से जनमानस के हृदय में दिव्य भाव का जागरण करने वाले,योगीकुल के अधिपति पूज्य श्री करपात्री जी महाराज की सदा जय हो,
श्रीविद्यासमुपासकं गुरुवरं यज्ञात्मकं सिद्धिदं,धर्माधर्मविवेचकं श्रुतिपरं शान्तं परं दैवतम्।
सिद्धान्तप्रतिमा-सनातनवपुः श्रीशंकरं नूतनं,पद्यैरष्टभिरद्य नौमि वचसा श्रीपाणिपात्रं यतिम्।।८।।
श्रीविद्या के समुपासक, यज्ञस्वरूप,वेद शास्त्र परायण,धर्म एवं अधर्म के समर्थ व्याख्याता,सिद्धिप्रदान करने वाले परम दैव,सनातन धर्म के सिद्धान्तों के साक्षात् विग्रह,शास्वत सत्ता वाले अभिनव शंकर,श्रीकरपात्री जी महाराज को अष्ट पद्य प्रसूनात्मक वाणी के द्वारा आज नमन करते हैं,।
अष्टपाशनिराशाय,सर्वेष्टसाधनायच। अन्तःकरण-शुद्ध्यर्थं-मयाकारि तदष्टकम्।।९ ।।
अष्ट पाशों के विनाश के लिये, सर्व इष्ट सिद्धि के लिये,तथा अन्तःकरण की शुद्धि के लिये मेरे द्वारा ये अष्टक रचा गया ।
( साभार : श्रीगुरुकृपाधनसम्पन्नः त्र्यम्बकेश्वरश्चैतन्यः )
वेदार्थपारिजात , खण्ड -०२
vedartha parijatah part-2
धर्म की जय हो !
अधर्म का नाश हो !
प्राणियों में सद्भावना हो !
विश्व का कल्याण हो !
गोहत्या बंद हो !
गोमाता की जय हो !
हर हर महादेव !
। । जय श्री राम । ।
।।श्री धर्मसम्राट्-स्तवनम्।।
आदित्यो-निजतेजसा हिमकर-स्तापापनोदेन वै, भौमः शत्रुविदारणेन-सततं सौम्यश्च ज्ञानाकरैः।
वाण्या देवगुरुःकविःसुतपसा सौरिश्च सत्येन यः, इत्थं सर्वविधैःग्रहैः विलसितःश्रीपाणिपात्रो यतिः।।१।।
स्वकीय तेजस्विता से जो सूर्य,मानव मन के संतापों को निश्चित दूर करने में जो चन्द्र,शास्त्र विरोधियों के अभिमतों को विदीर्ण करने में (सेनापतित्वात्)भौम,ज्ञान संपदा में बुध,शास्त्र पूत वक्तृता में देवगुरु वृहस्पति,तपस्या में कविवर शुक्राचार्य,सत्य भाषण एवं न्यायप्रियता में शनिदेव,के समान हैं,ऐसे सर्वविध ग्रहों के तेज से सुशोभित पूज्य श्री करपात्री जी महाराज का दिव्य स्वरूप है।१।।
भक्त्या-भूषित-मानसं यतिवरं वैराग्य-वोधाश्रयं,ज्ञानाकाश-विभासकं-पटुतमं विज्ञान-भा-भासुरम्।
सिद्धान्त-प्रतिपादने प्रतिपलं संरक्षणे तत्परं, वन्दे ज्ञानदिवाकरं हरिहरानन्दं सदा श्रद्धया।।२।।
भक्ति से भूषित मन वाले,ज्ञान-वैराग्य से संपन्न,ज्ञानाकाश को प्रकाशित करने वाले,विज्ञान के तेज से भासित अत्यन्त दक्ष,प्रतिपल सिद्धान्त के प्रतिपादन एवं संरक्षण में तत्पर,ज्ञानदिवाकर यतिश्रेष्ठ पूज्य श्री हरिहरानन्द सरस्वती जी महाराज को में सदा श्रद्धापूर्वक नमन करता हूं।।२।।
यो दृष्टवा भवसागरे निपतितं मोहान्धकारे जगत्, अज्ञाना-वृतमानसं विचलितं पाखण्ड पंकेरतम्।
कारुण्येन समागतो नरवरे तद्रक्षितुं यः स्वयं, पूज्यो भावभरैःनृभिःप्रतिदिनं श्रीपाणिपात्रो यतिः।।३।।
अज्ञान से घिरे हुए,अतएव विचलित हो पाखण्ड रूपी कीचङ से आवृत,प्राणियों को मोहान्धकार रूपी भवसागर में पङे हुए देखकर करुणा से द्रवीभूत हो इस जगत की रक्षा के लिये,जो स्वयं १नरवर में आये,ऐसे पूज्य श्री करपात्री जी महाराज समस्त प्राणियों के द्वारा भावपूर्वक नित्य पूजनीय(प्रणम्य) हैं।।
१ -यद्यपि पूज्य श्री की अवतरण स्थली भटनी प्रतापगढ यूपी है,तदपि यहां नरवर को वरीयता देने का तात्पर्य है,जन्म के दो प्रकार शास्त्रों में कहे गये हैं, १ -विन्दु २ -नाद,(द्विधा वंशो विद्यया जन्मना च)पूज्य श्री का पावन यश विन्दु कुल की अपेक्षा नाद (विद्या,ज्ञान)कुल के कारण ही है,नरवर पूज्य श्री का विद्याकुल गुरुकुल है।
आर्यभ्रान्ति निवारणैक-कुशलो लोकस्य संरक्षकः, शास्त्रार्थ-प्रतिपादने च निरतो वादादि संयोजने।
जात्या वर्णविधिर्न कर्मविहितः शास्त्रेष्वियानेव वाक्, इत्याख्यैः सुवचैः प्रतिष्ठितयशाः श्रीपाणिपात्रो यतिः।।४।।
तथाकथित आर्य जनों के विचारों में आयी भ्रान्तियों के निवारण में कुशल,लोक के संरक्षक,शास्त्रों के परमपरागत समुचित अर्थ का प्रतिपादन करने तथा(वादे वादे जायते तत्व बोधः इस सिद्धान्त का अनुसरण करते हुये) शास्त्रीय पक्ष का निर्धारण करने के लिये विचार गोष्ठी आयोजित करने में निरत,वर्ण व्यवस्था जन्म से होती है न कि कर्म से शास्त्रों में यही सिद्धान्त स्पष्टतया सर्वथा वर्णित है,इत्यादि सम्यक मतों के प्रतिपादन से लब्ध प्रतिष्ठ पूज्य श्री करपात्री जी महाराज वन्दनीय हैं।
संसारानल-तप्तमानसवतां कोसौ सुधानिर्झरः, भक्तानां-भगवानपूर्व-रुचिरो-वात्सल्य-कल्पद्रुमः।
मोहग्राहग्रहीतमानसवतां मोक्षार्थ विद्यामणिः, सर्वाशापरिपूरको हरिहरो श्रीपाणिपात्रोयतिः।।५।।
संसाराग्नि में झुलसते प्राणियों को शीतलता प्रदान करने के लिये ये सुधा निर्झर के रूप में कौन हैं,भक्तोंके लिये अपूर्व मनोहर सर्वाशापरिपूरक भगवान,महामोह रूपी ग्राह के द्वारा जकङे हुये मन वाले प्राणियों की मुक्ति के लिये जो विद्या मणि हैं,(ऋते ज्ञानान्न मुक्तिः) वात्सलता के कल्पतरु श्रीहरिहरानन्द सरस्वती स्वामीश्री करपात्री जी महाराज वन्दनीय हैं।।५।।
शैवानां-शिवतत्वनिष्ठ-रुचिरःसीताधवो राघवः, शाक्तानां समतामयश्च मधुहा राधाधवोमाधवः।
विष्णौ भक्तिमतां सतां शिवकरःश्रीवैष्णवःशंकरः, नोमेशो न हरी असौ हरिहरःसाक्षाद्यतीन्द्राधिराट् ।। ६ ।।
मानो शैवों में श्रेष्ठ शिवतत्व निष्ठ भगवतीसीता के स्वामी श्रीराम हैं,अथवा शाक्तों में समत्वभाव रखने वाले,मधुहन्ता राधावर श्रीकृष्ण हैं,या भगवान विष्णु में भक्ति भाव रखने वाले,सज्जनों का कल्याण करने वाले,श्रीवैष्णव देवाधिदेव महादेव ही हैं,अरे नहीं,ये न तो उमापति शिव हैं, न राम कृष्ण हैं, ये तो साक्षात् यतीश्वरो के भी अधिनायक पूज्य श्री हरिहरानन्द सरस्वती स्वामी श्री करपात्री जी महाराज हैं।
(१ हरिश्च हरिश्च इति हरी-श्रीराम कृष्णौ,)
धर्मस्य प्रगतिर्भवेदवनतिर्भूयादधर्मस्य च,सद्भावो मनुजेषु वै खलु सदा लोकस्य भद्रं भबेत्।
गोमातुर्विजयोभवेदथ च गोहत्या निरुद्धा भवेत्,इत्थं घोषकरः सदा विजयते योगीन्द्रवृन्दाधिराट्।।७ ।।
धर्म की जय हो,अधर्म का नाश हो,प्राणियों में सदद्भावना हो,विश्व का कल्याण हो,गौ माता की जय हो,गो हत्या बन्द हो,इस प्रकार की घोषणाओं से जनमानस के हृदय में दिव्य भाव का जागरण करने वाले,योगीकुल के अधिपति पूज्य श्री करपात्री जी महाराज की सदा जय हो,
श्रीविद्यासमुपासकं गुरुवरं यज्ञात्मकं सिद्धिदं,धर्माधर्मविवेचकं श्रुतिपरं शान्तं परं दैवतम्।
सिद्धान्तप्रतिमा-सनातनवपुः श्रीशंकरं नूतनं,पद्यैरष्टभिरद्य नौमि वचसा श्रीपाणिपात्रं यतिम्।।८।।
श्रीविद्या के समुपासक, यज्ञस्वरूप,वेद शास्त्र परायण,धर्म एवं अधर्म के समर्थ व्याख्याता,सिद्धिप्रदान करने वाले परम दैव,सनातन धर्म के सिद्धान्तों के साक्षात् विग्रह,शास्वत सत्ता वाले अभिनव शंकर,श्रीकरपात्री जी महाराज को अष्ट पद्य प्रसूनात्मक वाणी के द्वारा आज नमन करते हैं,।
अष्टपाशनिराशाय,सर्वेष्टसाधनायच। अन्तःकरण-शुद्ध्यर्थं-मयाकारि तदष्टकम्।।९ ।।
अष्ट पाशों के विनाश के लिये, सर्व इष्ट सिद्धि के लिये,तथा अन्तःकरण की शुद्धि के लिये मेरे द्वारा ये अष्टक रचा गया ।
( साभार : श्रीगुरुकृपाधनसम्पन्नः त्र्यम्बकेश्वरश्चैतन्यः )
वेदार्थपारिजात , खण्ड -०२
vedartha parijatah part-2
धर्म की जय हो !
अधर्म का नाश हो !
प्राणियों में सद्भावना हो !
विश्व का कल्याण हो !
गोहत्या बंद हो !
गोमाता की जय हो !
हर हर महादेव !
। । जय श्री राम । ।
गुरुवार, 11 सितंबर 2014
Pt. Batuk Sharma offering Blessing to Blogger
Me with my Guru ! Pt. Batuk Sharma is one of the disciple(shishya) of Swami Karpatri Ji Maharaj. He has served Dharam Samrat Swami Karpatri Ji in his last times. Pt. Batuk Sharma is Gneral Seccretary of Kashi Vidhwat Parishad. He had been main Mahant of Tulsi Manas Mandir, Kashi for years. He is a great follower of Sanatan dharma lineage just like his Guru. May Bholenath always bless this live legend.
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