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मंगलवार, 4 अक्टूबर 2016

What is the difference between heart, mind, logic & sprituality ?

In Sanatan Dharm or Eternal Law, sacred Advait Vedant his holiness Adi Shankar describe through Upadeshasahasri or ॥ उपदेशसाहस्री ॥.

॥ उपदेशसाहस्री ॥

तदिदं मोक्षसाधनं ज्ञानं

साधनसाध्यादनित्यात्सर्वस्माद्विरक्ताय त्यक्तपुत्रवित्तलोकैषणाय

प्रतिपन्नपरमहंसपारिव्राजायशमदमदयादियुक्ताय

शास्त्रप्रसिद्धशिष्यगुणसम्पन्नाय शुचये ब्राह्मणाय

विधिवदुपसन्नाय शिष्याय जातिकर्मवृत्तविद्याभिजनैः परीक्षिताय

ब्रूयात्पुनःपुनः यावद्ग्रहणं दृढीभवति ॥ २॥

तं प्रति ब्रूयादाचार्यः---स यदि ब्रूयात् भगवन्, कथमहं मृषाऽवादिषमिति ॥ १४॥


आचार्यो ब्रूयात्---अविद्याकृतमेतद्यदिदं दृश्यते

श्रूयते वा, परमार्थतस्त्वेक एवात्मा अविद्यादृष्टेः अनेकवत्

आभसते, तिमिरदृष्ट्या अनेकचन्द्रवत् । ' यत्र वा अन्यदिव

स्यात् ', ' यत्र हि द्वैतमिव भवति तदितर इतरं पश्यति

', ' मृत्योः स मृत्युमाप्नोति ', ' अथ यत्रान्यत्पश्यति

अन्यच्छृणोति अन्यद्विजानाति तदल्पं, अथ यदल्पं तन्मर्त्यमिति

', ' वाचारम्भणं विकारो नामधेयं मृत्तिकेत्येव सत्यम् ', '

अन्योऽसावन्योऽहम् ' इति भेददर्शननिन्दोपपत्तेरविद्याकृतं द्वैतं

' एकमेवाद्वितीयम् ', ' यत्र त्वस्य ', ' तत्र को मोहः कः शोकः '

इत्याद्येकत्वविधिश्रुतिभ्यश्चेति ॥ ४०॥

Adi Shankara composes, in verse 2.14.40 of Upadeshasahasri, that "the psyche is a position of journey where the divine beings, all information [Vedas] and all other filtering organizations get to be one; a shower in that spot of journey makes one Eternal".
With spirituality all Heart, Mind and Logic become one. According no difference between all. All is Advait.
Best Wishes,

सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

द्वैतवादियों के आक्षेपों की धज्जियां


#द्वैतवादियों_के_आक्षेपों_की_धज्जियां - गौड़ीय मतावलम्बी ईर्ष्या और अज्ञान के वशीभूत होकर अद्वैतवादियों को #मायावादी कहत...

Posted by धर्मसम्राट स्वामी करपात्री on Monday, 8 February 2016

रविवार, 20 दिसंबर 2015

गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

“नारायण” – नाम – रहस्य

  ॐ नारायणं  नमस्कृत्य नरं चैव  नरोत्तमंम् |  
   देवीं  सरस्वतीं  व्यासं  ततो  जयमुदीरयेत् ||
नारायण नाम मुझे बहुत प्रिय है , सो   प्यारे  भगवान्  श्रीमन्नारायण के  कृपापात्रों   के  चित्ताह्लाद् के  लिए इसकी व्याख्या प्रस्तुत कर रहा हूं  –

नारायण शब्द में दो पद हैं – नार पूर्वपद है और अयन उत्तरपद |

‘नार’ पद के विविध दृष्टियों से विविध अर्थ हैं , जो आगे प्रस्तुत किये जायेंगे | प्रथम अयन शब्द पर विचार करते हैं |
‘अयन’ पद इण गतौ (अदादिगणीय ३५४ ) अथवा अय गतौ (भ्वादिगणीय ४७० ) धातु से भाव या कर्तृत्त्वादि अर्थो मे ल्युट् प्रत्यय करने पर निष्पन्न होगा |
गतेस्त्रयोsर्थाः -ज्ञानं गमनं प्राप्तिश्चेति -यह प्रसिद्ध ही है | भाव मे तो इतिः आयो गतिर्वा अयनम् -गति का नाम अयन है |
कारकार्थ मे यन्ति अयन्ते गच्छन्ति प्राप्नुवन्ति यं सोsयनः -जिसको प्राप्त होते हैं , वो अयन है |
अथवा – यन्ति अयन्ते गच्छन्ति जानन्ति वा येन सोsयनः -जिसके द्वारा किसी को प्राप्त होते है या जानते हैं , वो अयन है |
अथवा – यन्ति अयन्ते यस्मिन् सोsयनः – जिसमें गति करते हैं , जो सबकी सहज क्रिया का आधार है -आश्रय है , वो अयन है |
अर्थात् गति , गंतव्यस्थान , गतिसाधन , ज्ञानसाधन , आश्रयस्थान , शरण आदि को अयन कहा जाता है |
मनु ने अप् = आपः को नारा कहा है (आपो नारा इति प्रोक्ता ० -मनु० ०१/१०) | नृ नये धातु से कर्तृत्व मे ण प्रत्यय ( ज्वलितिकसन्तेभ्यो ण – अष्टा ० ३/१/१४०) करने पर नार शब्द सिद्ध होगा | नार से स्त्रीत्व मे टाप् प्रत्यय ( अजाद्यतष्टाप् -अष्टा ० ४/१/३) करने पर नारा बनेगा |
नरयन्ति नृणन्ति नयन्ति संघातरूपतां पदार्थान् यास्ता आपो नारा – जो पदार्थ को संघात रूप प्रदान करते हैं , वे जल (आपः ) नारा कहलाते हैं |
अथवा – नरयति नृणाति नयतीति वा स नरोsग्निः -तस्य नरस्याग्नेः सूनवो नाराः आपः -नयन (मार्गदर्शन ) करने वाला अग्नि नर कहलाता है , उससे उत्पन्न जल (अग्नेरापः – तै० उप० २/१) उसके अपत्यवत् होने के कारण नारा कहलायेंगे |
नारायणमयनो नारायण: – अर्थात् उन नारा(आपः) का अयन (आश्रयस्थान) होने से नारायण हैं |
अथवा – नाराः आपः अयनं ज्ञानप्राप्तिसाधनं यस्य स नारायणः – जल (आपः) उस परमात्मा का ज्ञान प्राप्त कराने वाला है – उसकी महिमा की ओर संकेत करने वाले हैं , इसलिए वे नारायण हैं |
नरयति नृणाति नयति प्राणिनः कर्मफ़लानिति नरः परमात्मा – मनुष्यों को कर्मफल की ओर ले जाने के कारण परमात्मा नर है |
नरस्येमे मुक्ताजना: – उस नर (परमात्मा ) के भक्तजन (मुक्तावस्था प्राप्त ) जो लोग हैं , वे नार हैं | इस दृष्टि से नाराणामयनो नारायणः -उन मुक्तों के जो आश्रय स्थान या प्राप्तव्य तत्त्व परमात्मा हैं , उनका नाम नारायण है |
नर संबंधी जन्म या कर्मफल आदि को नार कहेंगे ( ‘नरस्येदं नारम् ‘ तस्येदम् -अष्टा ० ४/३/१२० से अण् ) , उस नार (नरजन्म) अथवा कर्मफ़ल को जिसके आश्रय से प्राप्त होते हैं , वह परमेश्वर नारायण हैं |

(अत्र   ध्यातव्यम् – “तस्येदम्” (-पा०सू० ४/३/१२०) इत्यण्प्रत्ययः  | यद्यपि अणि कृते ङीप्प्रत्ययः प्राप्तस्तथापि छान्दसलक्षणैरपि स्मृतिषु व्यवहारात्  ” सर्वे  विधयश्छन्दसि विकल्प्यन्ते ” इति पाक्षिको  ङीप्प्रत्ययस्तस्याभावपक्षे सामान्यलक्षणप्राप्ते  टापि कृते  नारा इति  रूप सिद्धिः |


शब्द निषेधार्थक है अर कहते हैं पैनी या नुकीली वस्तु को , जो शरीर मे सहज प्रवेश करके चुभती हो या कष्ट प्रदान करती हो | इस सहज -प्रवेश – सादृश्य से अथवा कष्टप्रदानसाम्य से दोष भी अर या अरे कहलायेंगे |

इस दृष्टि से –
अराः = दोषाः , न अराः (=नाराः=) = गुणाः , नाराणां गुणानामयनम् पराकाष्ठास्थानम् नारायणः – अर्थात् समस्त शुभगुणों का परमधाम परमात्मा नारायण है  क्योंकि उसमें गुण ही गुण हैं , दोषों की गंध भी उसमें नहीं है |
इस प्रकार –
अविद्यमाना अरा दोषा येषु ते वेदा नाराः , तेषामयनो नारायणः |
अर्थात् सब् प्रकार के दोषों से रहित होने के कारण वेद नार हैं , उनका अयन (मुख्य उद्गम – स्थान ) होने से परमात्मा नारायण है |
रमणं रः (रमु क्रीडायाम् से बाहुलाकाद् भाव में ड प्रत्यय -रम् + ड =रः ) = आनन्दः |
न रः = अरः (अरमणम् ) शोको दुःखम् | न अरः = नारः ( नारमणम् ) = आनन्दः |
नारः = आनन्दः = अयनं स्वरूपं यस्य स नारायण : |
नार अर्थात् आनन्द ही स्वरूप है जिसका , वह परमात्मा नारायण है |
महर्षि वेदव्यास जी ने तो स्पष्ट रूप से नित्य निर्गुण परमात्मा का नाम नारायण बताया है –
तत्र यः परमात्मा हि स नित्यं निर्गुणः स्मृतः |
स हि नारायणो ज्ञेयः सर्वात्मा पुरुषो हि सः ||
(-महा० शा० ३५१/१४ )
श्री आद्य शङ्कराचार्य भगवान् कहते हैं कि –
नर आत्मा , ततो जातान्याकाशादीनि नाराणि कार्याणि तानि अयं कारणात्मना व्याप्नोति , अतश्च तान्ययनमस्येति नारायणः |
अर्थात् नर आत्मा को कहते हैं , उससे उत्पन्न हुए आकाशादि नार हैं , उन कार्यरूप नारों को कारणरूप से व्याप्त करते हैं , इसलिए वे उनके अयन (आश्रय वा घर ) हैं अतः भगवान् का नाम नारायण है |

नराणां जीवानामयनत्वात्प्रलय इति वा नारायणः ” यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति ( तै० उप० ३/१) इति श्रुतेः , अर्थात् प्रलय काल में नार अर्थात् जीवों के अयन होने के कारण नारायण हैं | श्रुति कहती है – जिसमें कि सब जीव मरकर प्रविष्ट होते हैं , वह नारायण हैं |

कलियुग केवल नाम आधारा | सुमिरि सुमिरि नर उतरहि पारा ||
धर्म  की  जय  हो !
अधर्म का  नाश  हो !
प्राणियों  में  सद्भावना  हो !
विश्व  का  कल्याण  हो !
गोमाता  की  जय  हो !
हर हर महादेव !
नमो नारायणाय |
|| जय श्री राम ||

श्रीशिवरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषि


श्री गणेशाय नमः .. अस्य श्रीशिवरक्शास्तोत्रमन्त्रस्य याज्ञवल्क्य ऋषि श्री सदाशिवो देवता .. अनुष्टुभ् छन्दः श्रीसदाशिवप्रीत्यर्थं शिवरक्शास्तोत्रजपे विनियोगः चरितं देवदेवस्य महादेवस्य पावनम . अपारं परमोदारं चतुर्वर्गस्य साधनम . गौरीविनायकोपेतं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रकम . शिवं ध्यात्वा दशभुजं शिवरक्शां पठेन्नरः गंगाधरः शिरः पातु भालं अर्धेन्दुशेखरः . नयने मदनध्वंसी कर्णो सर्पविभूश्हण . घ्राणं पातु पुरारातिः मुखं पातु जगत्पतिः . जिह्वां वागीश्वरः पातु कंधरां शितिकंधरः . श्रीकण्ठः पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धरः . भुजौ भूभारसंहर्ता करौ पातु पिनाकधृक . हृदयं शंकरः पातु जठरं गिरिजापतिः . नाभिं मृत्युञ्जयः पातु कटी व्याघ्राजिनाम्बरः . सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागतवत्सलः उरू महेश्वरः पातु जानुनी जगदीश्वरः .. जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिपः चरणौ करुणासिंधुः सर्वाङ्गानि सदाशिवः एतां शिवबलोपेतां रक्शां यः सुकृती पठेत . स भुक्त्वा सकलान्कामान शिवसायुज्यमाप्नुयात . ग्रहभूतपिशाचाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये . दूरादाशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्शणात . अभयङ्करनामेदं कवचं पार्वतीपतेः . भक्त्या बिभर्ति यः कण्ठे तस्य वश्यं जगत_त्रयम इमां नारायणः स्वप्ने शिवरक्शां यथा.अ.अदिशत . प्रातरुत_थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्य: तथा अलिखत - इति श्रीयाज्ञवल्क्यप्रोक्तं शिवरक्शास्तोत्रं सम्पूर्णम -

सोमवार, 7 दिसंबर 2015

दर्शन अद्वैत.


मूषक - सर्प , प्रेत - भभूत , वृषभ -सिंह , सर्प - मयूर ......मूषक = श्री गणपति के वाहनसर्प = शिव के कण्ठहारप्रेत = शि...

Posted by धर्मसम्राट स्वामी करपात्री on Sunday, 6 December 2015

दर्शन शरभ


बुधवार, 25 नवंबर 2015

‪दर्शन माँ गंगा‬ और ‪आनंदवन‬


Darśana #माँ_गंगा और #आनंदवन

Posted by धर्मसम्राट स्वामी करपात्री on Wednesday, 25 November 2015

षड्दर्शन‬


#षड्दर्शन का मर्म ---> कर्म और ज्ञान - ये दो ही मार्ग हैं ( द्वाविमौ पन्थानौ ) , इसी के अनुसार षड्दर्शन भी व्यवस्थित हैं...

Posted by धर्मसम्राट स्वामी करपात्री on Wednesday, 25 November 2015

गुरुवार, 19 नवंबर 2015

एक संदेश


In progress to attain Atma Shatkam chant राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ||Maya...

Posted by Dharamsamrat Swami Karpatri Ji on Wednesday, 18 November 2015

शुक्रवार, 13 नवंबर 2015

दर्शन सोमनाथ


12 NOV15 SAYAM SHRINGAR DARSHAN SHREE SOMNATH MAHADEV

Posted by Dharamsamrat Swami Karpatri Ji on Thursday, November 12, 2015

बुधवार, 11 नवंबर 2015

शुभ काल भैरव


शुभ काल भैरव

Posted by Shri Kashi Vishwanath Temple on Wednesday, November 11, 2015

सोमनाथ दर्शन


11NOV15 SAYAM SHRINGAR DARSHAN SHREE SOMNATH MAHADEVVIRAJBEN (PRO)

Posted by Dharamsamrat Swami Karpatri Ji on Wednesday, November 11, 2015

श्री शांता दुर्गा विजयते ||


सोमवार, 9 नवंबर 2015

दर्शन भगवान सोमनाथ


रविवार, 8 नवंबर 2015

प्रश्न- शास्त्र प्रमाण क्या हैं ?

प्रश्न- शास्त्र प्रमाण क्या हैं ?
उत्तर - १- वेद
२- वेदाङ्ग- वेदोपाङ्ग
३- स्मृति...
४- इतिहास (रामायण, महाभारत )
५- पुराण

इनका कोइ भी वाक्य - प्रमाण शास्त्र प्रमाण है |
प्रश्न - हिन्दू कौन है ?
उत्तर - जो शास्त्र प्रमाण को शिरोधार्य करके स्वीकारे , वही हिन्दू है |
|| जय श्रीराम ||

द कम्प्लीट वर्क्स ऑफ स्वामी विवेकानन्द , भाग- ०३ or The complete works of Swami Vivekanand , Part - 03


स्वामी विवेकानन्द ( Swami Vivekananda) के इस विचार का उनके चेले स्पष्टीकरण दें (द कम्प्लीट वर्क्स ऑफ स्वामी विवेकानन्द...

Posted by Dharamsamrat Swami Karpatri Ji on Saturday, November 7, 2015

जगतः पितरौ वन्दे - पार्वतीपरमेश्वरौ


जगतः पितरौ वन्दे -पार्वतीपरमेश्वरौ -१- पार्वतीप + रमेश्वरः = शिव ( प इत्युक्ते पतिः = पार्वतीं पातिः पालयति रक्षयति ...

Posted by Dharamsamrat Swami Karpatri Ji on Saturday, November 7, 2015

बुधवार, 4 नवंबर 2015

शांता दुर्गा


jai Shanta durga kiजय #शांता_दुर्गा की |

Posted by Shri Kashi Vishwanath Temple on Wednesday, November 4, 2015

मंगलवार, 3 नवंबर 2015

दर्शन गंगोलीहाट की हट कालिका माता


#शाङ्कर_दर्शनम्जो अज्ञानी (तथाकथित फेस्बुकिये #स्वरूपानन्दी_चेले ) ये कहते हैं कि तुमको किसने हक़ दिया #श्री_आद्य_शङ्कर...

Posted by Dharamsamrat Swami Karpatri Ji on Tuesday, November 3, 2015

ब्लॉग आर्काइव